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किंग ऑफ पेंटाकल्स

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अपराईट भविष्य कथन का महत्व



विश्वसनीय व्यक्ति, स्थिरता, धन, व्यापार, नेतृत्व, सुरक्षा, अनुशासन, बहुतायत।

ओहोहो! कितने विचित्र किंतु सत्य वचं। आप राजा वृषभदेव के जैसे एक विश्वसनीय व्यक्ति हैं। आपके उपर आंख मूंदकर लोग भरोसा करते हैं, लेकिन आपका अपने आप के उपर ही भरोसा नहीं है। लोग आपको कामयाब समझते हैं लेकिन आपको अभी भी जीवन में स्थिरता चाहिए। धन, व्यापार आपके लिए कामयाब होने का एक जरिया है। कुछ दिनों से नई परियोजना आपके मन में चल रही है जो आपको व्यापार में कामयाब बनाएगी।

उसपर एक्शन लीजिए। आपके पास नेतृत्व गुण हैं। उन गुणोंका विकास कीजिए। आप हमेशा वित्तीय सुरक्षा चाहते हैं। जिसके लिए अनुशासन का भी आप पालन करते हैं। आपके खर्च भी कंट्रोल में होते हैं। जिसके कारण आपके पास समृद्धी, बहुतायत है। चाहे आप माने ना माने लेकिन आपको कुदरत ने भर भरकर दिया है।

रिवर्स भविष्य कथन



रिश्वत, भौतिकवादी, शांत, आर्थिक रूप से अयोग्य, धन और स्थिति से ग्रस्त, जिद्दी।

आप स्वयं रिश्वत देने में विश्वास नहीं रखते, लेकिन आपको रिश्वत देनी पडती है। परिवार का प्यार पाने के लिए रिश्वत, भगवान की कृपा पाने के लिए रिश्वत, शरीर की ऊर्जा के लिए स्वादिष्ट भोजन की रिश्वत।ाप अत्यंत प्रेक्टिकल है, जिसे भौतिकवादी कहा जाएगा। आप बाहर से हमेशा शांत होते हैं यह कई बार लोगों को लगता है कि आपकी कमजोरी है। जो शायद आर्थिक रूप से अयोग्य हो सकती है। क्योंकि नौकरी या व्यापार में थोडा आक्रामक रहना ही पडता है। आप हमेशा अपने आप को व्यस्त रखते हैं, धन और स्थिति से ग्रस्त रखते हैं। हा, और एक बात आप बहोत जिद्दी है, इस जिद का कुछ करना पडेगा। इस स्वभाव गुण से अन्य लोग परेशान होते रहते हैं।

युरोपिय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु



यह कार्ड लगभग काला है। राजा के कपड़े गहरे हरे रंग के हैं जिसपर अंगूर का डिज़ाइन है। राजा अपने दाहिने हाथ में गोले के साथ एक जादू की छड़ी पकड़े हुए है। उन्होंने अपने बाएं हाथ में पेंटाकल धारण किया हुआ है। उनकी कुर्सी पर चार बुलहेड्स हैं।

प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु


अपने भव्य नारंगी रंग के महल के दरबार में राजा अपने सिंघासन पर विराजमान है।

वैदिक दर्शन और शिव पुराण के अनुसार राजा वृषभदेव, राजा नाभि के पुत्र थे। वृषभदेव को बाद में जैन पवित्र लिपियों के अनुसार पहले जैन तीर्थंकर आदिनाथ के रूप में जाना जाता है। उन्होंने इंद्र की पुत्री जयंती से विवाह किया था। उनके 100 बेटे थे। बड़े पुत्र भरत थे। वह भारत देश के पहले चक्रवर्ति राजा थे। इसलिए इस देश को 'भारत' के नाम से जाना गया। (इंडिया, ब्रिटिश शासकों द्वारा दिया गया एक अपमानजनक नाम है।असल नाम इस देश का 'भारत' है। ब्रिटिश शासक इसे 'इंडिया' की जगह 'भारत' भी कह सकते थे। ईसा पूर्व चौथी शताब्दी यूनानियों द्वारा इसे सिंधु घाटी, सिंधु, हिंदू ब्ला ब्ला बोला गया आदि फर्जी संदर्भ हैं।

अंग्रेज इस देश और पूरी दुनिया का पुनर्गठन करने की तैयारी में थे। इस देश का ही नहीं उन्होंने कई देशों और स्थानों के नाम बदले।दुर्भाग्य से भारत के लोगों ने राजनीतिक और भाषाई पहलुओं के कारण 'भारत' के बजाय 'इंडिया' को व्यापक रूप से स्वीकार किया।

भारतीय शासकों ने पिछले 70 वर्षों में कई शहरों, कस्बों के नाम बदले। क्या देश का नाम फिरसे भारत होगा?)

(वृषभदेव की विस्तृत कथा ग्रंथ के अगले भाग में है।)

वृषभनाथ को जैन ऋषभदेव कहते हैं। इन्हीं से जैन धर्म या श्रमण परम्परा का प्रारम्भ माना जाता है। यह जैनियों के प्रथम तीर्थंकर हैं। इनसे पूर्व जो मनु हुए हैं वही जैनियों के कुलकर हैं। कुलकरों की क्रमश: 'कुल' परम्परा के सातवें कुलकर नाभिराज और उनकी पत्नी मरुदेवी से ऋषभ देव का जन्म चैत्र कृष्ण-9 को अयोध्या में हुआ। ऋषभदेव स्वायंभू मनु से पाँचवीं पीढ़ी में इस क्रम में हुए- स्वायंभू मनु, प्रियव्रत, अग्नीघ्र, नाभि और फिर ऋषभ। कुलकर नाभिराज से ही इक्क्षवाकु कुल की शुरुआत मानी जाती है।

जब ऋषभदेव माँ के गर्भ में थे तब उनकी माँ ने चौदह (या सौलह) शुभ चीजों का सपना देखा था। उन्होंने देखा कि एक सुंदर सफेद बैल उनके मुँह में प्रवेश कर गया है। एक विशालकाय हाथी जिसके चार दाँत हैं, एक शेर, कमल पर बैठीं देवी लक्ष्मी, फूलों की माला, पूर्णिमा का चाँद, सुनहरा कलश, कमल के फूलों से भरा तालाब, दूध का समुद्र, देवताओं का अंतरिक्ष यान, जवाहरात का ढेर, धुआँरहित आग, लहराता झंडा और सूर्य।

अयोध्या के राजा नाभिराज के पुत्र ऋषभ अपने पिता की मृत्यु के बाद राज सिंहासन पर बैठे और उन्होंने कृषि, शिल्प, असि (सैन्य शक्ति ), मसि (परिश्रम), वाणिज्य और विद्या इन छह आजीविका के साधनों की विशेष रूप से व्यवस्था की तथा देश व नगरों एवं वर्ण व जातियों आदि का सुविभाजन किया। इनके दो पुत्र भरत और बाहुबली तथा दो पुत्रियाँ ब्राह्मी और सुंदरी थीं जिन्हें उन्होंने समस्त कलाएँ व विद्याएँ सिखाईं।

ऋषभदेव की मानव मनोविज्ञान में गहरी रुचि थी। उन्होंने शारीरिक और मानसिक क्षमताओं के साथ लोगों को श्रम करना सिखाया। इससे पूर्व लोग प्रकृति पर ही निर्भर थे। वृक्ष को ही अपने भोजन और अन्य सुविधाओं का साधन मानते थे और समूह में रहते थे।

ऋषभदेव ने पहली दफा कृषि उपज को सिखाया। उन्होंने भाषा का सुव्यवस्थिकरण कर लिखने के उपकरण के साथ संख्याओं का अविष्कार किया। नगरों का निर्माण किया। बर्तन बनाना, स्थापत्य कला, शिल्प, संगीत, नृत्य और आत्मरक्षा के लिए शरीर को मजबूत करने के गुरु सिखाए। साथ ही सामाजिक सुरक्षा और दंड संहिता की प्रणाली की स्थापना की।

उन्होंने दान और सेवा का महत्व समझाया। जब तक राजा थे उन्होंने गरीब जनता, संन्यासियों और बीमार लोगों का ध्यान रखा। उन्होंने चिकित्सा की खोज में भी लोगों की मदद की। नई-नई विद्याओं को खोजने के प्रति लोगों को प्रोत्साहित किया। भगवान ऋषभदेव ने मानव समाज को सभ्य और सम्पन्न बनाने में जो योगदान दिया है उसके महत्व को सभी धर्मों के लोगों को समझने की आवश्यकता है।

एक दिन राजसभा में नीलांजना नाम की नर्तकी की नृत्य करते-करते ही मृत्यु हो गई। इस घटना से ऋषभदेव को संसार से वैराग्य हो गया और वे राज्य और समाज की नीति और नियम की शिक्षा देने के बाद राज्य का परित्याग कर तपस्या करने वन चले गए। उनके ज्येष्ठ पु‍त्र भरत राजा हुए और उन्होंने अपने दिग्विजय अभियान द्वारा सर्वप्रथम चक्रवर्ती पद प्राप्त किया। भरत के लघु भ्राता बाहुबली भी विरक्त होकर तपस्या में प्रवृत्त हो गए। राजा भरत के नाम पर ही संपूर्ण जम्बूद्वीप को भारतवर्ष कहा जाने लगा।

ऋषभनाथ नग्न रहते थे इसीलिए उन्हें वेद-विरुद्ध आचरण का मान लिया गया था। अपने कठोर तपश्चर्या द्वारा कैलाश पर्वत क्षेत्र में उन्हें माघ कृष्ण-14 को कैवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ तथा दक्षिण कर्नाटक तक नाना प्रदेशों में परिभ्रमण किया। वे कुटकाचल पर्वत के वन में नग्नरूप में विचरण करते थे। उन्होंने भ्रमण के दौरान लोगों को धर्म और नीति की शिक्षा दी। उन्होंने अपने जीवनकाल में चार हजार लोगों को दिक्षा दी थी। भिक्षा माँगकर खाने का प्रचलन उन्हीं से शुरू हुआ माना जाता है।

ऋग्वेद में ऋषभदेव की चर्चा वृषभनाथ और कहीं-कहीं वातरशना मुनि के नाम से की गई है। शिव महापुराण में उन्हें शिव के अट्ठाईस योगावतारों में गिना गया है।

यज्ञ में परम ऋषियों द्वारा प्रसन्न किए जाने पर, हे विष्णुदत्त, परीक्षित स्वयं श्रीभगवान विष्णु महाराज नाभि का प्रिय करने के लिए महारानी मेरुदेवी के गर्भ में आए। उन्होंने इस पवित्र शरीर का अवतार वातरशना श्रमण मुनियों के धर्मों को प्रकट करने की इच्छा से ग्रहण किया- भागवत पुराण अंतत: माना यह जाता है कि ऋषभनाथ से ही श्रमण परम्परा की व्यवस्थित शुरुआत हुई और इन्हीं से सिद्धों, नाथों तथा शैव परम्परा के अन्य मार्गों की शुरुआत भी मानी गई है। इसलिए ऋषभनाथ जितने जैनियों के लिए महत्वपूर्ण हैं उतने ही हिंदुओं के लिए भी परम आदरणीय इतिहास पुरुष रहे हैं। हिंदू और जैन धर्म के इतिहास में यह एक मील का पत्थर है।





प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड

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द लवर्स

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